निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

क्या मीराबाई और आधुनिक मीरा ‘महादेवी वर्मा’ इन दोनों ने अपने-अपने आराध्य देव से मिलने के लिए जो युक्तियाँ अपनाई हैं, उनमें आपको कुछ समानता या अंतर प्रतीत होता है? अपने विचार प्रकट कीजिए।

भक्तिकाल में कवयित्री मीराबाई ने अपने आराध्य देव से मिलने हेतु अपने घर-बार का त्याग कर कविता के माध्यम से उन्हें पाने की उक्ति अपनाई। उन्होंने इस हेतु सामाजिक आडंबर और लोक-लाज की परवाह न करते हुए अपने संपूर्ण जीवन को प्रभु को प्रेम में समर्पित कर दिया। उनकी रचनाओं में हम ईश्वर के प्रति गजब का माधुर्य भाव पाते हैं। इसका एक उदाहरण हम उनकी कविता ‘मेरे तो गिरिधर गोपाल दूसरो ना कोई--------में आसानीपूर्वक पाते हैं।

वहीं छायावादी कवियत्री महादेवी वर्मा की अपने आराध्य देव को पाने की युक्ति थोड़ी दार्शनिक है। उन्होंने अविवाहित रहते हुए अपने जीवन को हिंदी साहित्य को समर्पित कर दिया। उन्होंने ईश्वर के प्रति अपने प्रेम को मीराबाई की तरह खुलकर नहीं कहा। उनकी प्रस्तुत कविता ‘मधुर-मधुर मेरे दीपक जल’ में उनका ईश्वर से एकाकार हो जाने की इच्छा को हम मीराबाई की इच्छा से अलग नहीं मान सकते है। हाँ कहने के अंदाज में अवश्य थोड़ा अंतर है। दोनों में ही मूल अंतर यह है कि महादेवी अपने आराध्य को निर्गुण मानती हैं जबकि मीरा उनकी सगुण उपासक हैं|


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